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सूत्र
अर्थ
4 पटङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतसन्य
सक्कारेत्ता सम्माणेइता विउलं जीवियारिहं पीतिदाणदलयतिः त्तापडिविसेज्जति। ९३ तितर्ण मलेन्नि कुमारे अन्नयाकयाइ पहाए अतेउर परिवारसद्धिं परिबुडे अम्मधातीएसद्धिं जेणेत्र चित्तसभा तेणेव उवागच्छइ २ त्ता चित्तसमं अणुपविमति २ न्ता हाव भाव दिलासं विव्वोय कलियाई रूवाति पासमाणे जेणेव मल्लीए विदेह रायवरकन्नाए तयाणुरूवेणिवत्तिए तेगेव पहारत्थगमनाए ॥ ततेणं से मल्लदिन्ने कुमार मल्ली विदेहवर रायकण्णाए तयारुणिव्बतियं पासइ २ ता इमेयारूवं अज्झथिए जाव समुप्पजित्था - एसणं किं मल्लविदेहराय तिक हु, लजिए विलिए
मल दिन कुमारने चित्रकारों का सत्कार सन्मान किया यावत् आजीविका चले वैसा भीतिदान देकर त्रिमर्जन किये ॥ १२ ॥ एकदा मल्लीदिन कुमार स्नानकर अपने न्नन्तःपुर सहित दूध पिलानेवाली धात्री को साथ लेकर चित्रसभा में गया. चित्र सभा में प्रवेश कर हाव, भाव, हुपे मल्लो नाम की विदेह राजवर कन्या का जो रूप बन या उस की पास गये. का रूप देख कर ऐना विचार हुवा, कि क्या यह मल्ली विदेह राजवरकन्या है,
ऐसा कहकर वह लज्जित
हुआ, शर्मिंदा हुआ, और शनैः २ पीछे हटने लगा. मल्ली दिन कुमार को इममकार पीछे हटना हुवा देखक
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विलासवाले रूपों देखत मल्ल दिन कुमारने उस
* श्रीमल्लीनाथजीका आठवा अध्ययन 48+
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