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________________ ३६८ 48 अचादक-बालमनी मुनि श्री अमालक ऋषिषी विड्डे सणियं २ पच्चो सक्कइ॥तएगं तं मल्लदिन्नं कुमारं अम्मधाइ सणियं २ पच्चीसवंतं पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तमं पुत्ता लजिए बिलिए विड सणिय २ पच्चमाह ? ॥ तएणं मल्लदिन्नं अम्मध तिं एवं बयासी- जुत्तंणं अम्मो ! मम जाए भगिणीए गुरुदवयभूयाए लज्जणिज्जाए मचित्ताणिवत्तियसभ अणुपविसित्तए ॥ तएणं अम्मधाति मल्लादणंकमारं एय वयासी-नो स्खलु पुत्ता ! एस मल्ली, एसणं मल्लीएविदेह रायवरकण्णाए चित्तगरएणं तयाणुरू किंव्यत्तिए ॥ ९३ ॥ ततेण मल्लदिन्न अम्मधाइ एयम? सोचाणिसाम्म आ रुत्ते एवं वयामी-केसणं भो! चित्तगरए है उस की अम्मा धात्री घोली अहो पुत्र ! तुम क्यों .जित हाकर पीछे हटत हो ? मल्लं दम कुमार अपनी अम्मा धात्री ने इस प्रकार करने लगा. अहा मानालिज्ज. उत्पन्न क. ऐसे मग चत्र सभा म मेरे गुरु देव समान जता भगिाने को प्रवेश करना का योग्य है ? तब वह अम्माध त्र मल्लनिकमार सये बाल कि अहो पुत्र ! यह ली कुमारी हैं . परंतु विकारने ल्ल विदहगंजबरकन्या का ऐ । रूप बनाया है ॥ १३ ॥ अम्म धावं की पाम स एना सुनकर मल्लो दिन कुमार आसुक्त हुवा और ऐसा बोला कि ऐसा अपावित की प्रार्थना करनेवाला यावत् श्रे. हीराजित चित्रकार कौन है कि जितने म .प्रकाशक-राजाबहादुर रायी ज्वालाप्रमादजी. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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