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जारिसियाणं मल्लविदहबगरायकन्ना ॥ततेणं से सखेराया कुंडलजुयल जायधिम्ह जणिय. हासे दूयं सहावेइ २त्ता जाव तहेव पाहरेत्थगमाणाए॥४॥८॥तेणं कालेण तेणं समएणं कुरु जणवए होत्था, हरियणाउरेनयर, अदीणसन्तुणामंराया होत्या, जात्र विहरइ ॥८५॥ तत्यणं महिलाए कुंभगरसपुत्त पभारतीएदेव एअत्तए मल्ल ए विदहरायबर कण्णाय अणुमग्गजायए मल्लादन्नए नाम कुमार जाव जुबरायावि होत्था॥८६॥ तत्तणं मल्लदिने कुभार अन्नयाकयाइ कोडुधिय पुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं श्याम्मी-गच्छहणं
तुम्मे मम पमदवणसिए एगमहं चित्तसभं कोह. अणेग जाव पच्चाप्पणति ॥ ८७ ॥ मलया यावत् प्रतिबद रजा कहा और दून भ मिथिग जाने को निक 1. यह चीश दून ॥८॥ उस काल उम समय में कुरु नाम का था. उस में हस्तिनापुर नगर था, अदीनशत्रु राजा यावत् विचरता यः ॥ ८५ ॥ उर मिथिला नगरी में कुंभ गना का पुत्र प्रभावतीदेवी का असन ल्ला कुंवरी
की पीछे जन्मा हुल्ली -1म का कुार यानत युवराजा था ।। ८६ ।। मल दिन कुमान एकदा कौटु अम्बिक पुरुषों को बोला कर ऐ कहा-अहो देवानु प्रिय ! तुम मेरे घर की पाछे बन्खण्ड बग.च
संभवाली चित्रसभा करायो यावन् मुझे मेरा आना पछिी दा. कौटाम्बक पुरुषाने मनोन उक्त कार्य करके
अनुवादक-बालब्रह्मचारा मुान श्रा अपालक ऋषिजा +
प्रकाशक- नामदेवमहायजी ज्याप्रमाद ।
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