________________
2
ततेणं से मल्लदिन्ने चित्तगरसेणि सद्दावेइ २ त्ता एवं व्यामी-तुम्भेणं देवाणु पिया ! चितसभ हाव भ व विलास वियोह कलिहिं रूह चतेह नाव पच्चा पिणह॥८॥ तनेणं सा चित्तगरसणी तहत्ति पडिसणेइ २त्ता जेणेव सयाई २ गिहाई तणव उवागच्छइ २त्ता तूलियाओ वण्णरया गिणह३२ सा जेणव चित्तसभा तेणेव अणविमइ२ त्ता भमभाग वित्ति भभिमजइ चित्तसभं हाव भाव जाव चित्ते उपयत्तावि हात्था ॥ ८५ ॥ ततेणं एगम चित्तगरस्स इमयारूचे चितगरलडी लद्वापत्ता आभसमना
गया- जस्सणं दुपयस्तया चउप्पयरमवा अपयस्सया एगदेममविपासति, तस्सणं देसाणुउसकी आज्ञा पीछीदी ॥ ८७॥ तत्पश्चात् मल्ल देन कमारने चित्रकारों को बोलाये और कहा कि अहो देवानु प्रेश ! तुम उप चित्रसभा में हक, भाव, विलाभ, व्यमोह सहिन कल्पित रूपवाल विचा प्रकार मित्र धके, यावल मुझ पी अज्ञा पछी दो ॥ ८८॥ चित्र कागें उर की अज्ञ' को सत्त कर अब २ गृह गय वहां कई चित्र नकालने की कलमों, तरह २ के रंग लकर चित्रसभा में
अये, उनकोश कर चित्र समाचित्रों नीकालंकीमिका निभाग किया, उस घटर मटर कर 1ॐ चित्र नीकारन ये वनाइ, फर उस चित्रसभा में हर पार विलाम, विभ
शस्त्रानुसार चैग असन स्त्री पुरुषों की क्रीडा वगैरह कचित्र बनाये।।८१॥ उनमें से एक चित्रकार को।'
- षष्टाङ्ग ज्ञात धर्मकदा का प्रथम शुसन्ध
श्रमल्लानाथजी का अठरा अध्ययन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org