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होत्था ॥ ततेणं से कुंभराया सुबण्णेगारसेणी सहावेइ २ ता एवं बयासी-तुम्भेणं देवाणुप्पिया! इमस्स दिव्वस्स कुंडस जुयलस्स संधी सघडेह ॥ ततेणं सा सुवण्णगार सेणी एयमटुं तहत्ति पडिसुणेति २त्ता तं दिन्नं कुंडस जयलं गेण्हइ २ ताजणेत्र सुवण्णगार भेसियाओ संणेव उवागच्छति २ चा सुवण्णगार भेसिया सुणिवेसेइ, बहुर्हि आएहिय. जाव परिणाममाणा इन्छ ते तस्म दिवसस्स कुंडलजुयल संधिषडत्ताए, नो वेवणं संचाएत्ति घडित्तए॥ततेणं से मुवण्णगारसेणी जगेव कुंभएराया तेणेव उबागच्छइ २ ता करयल जाव वडावडत्ता २ एवं वयासी-एवं खलु क्यासी सामी अजतुन्भे अम्हे सहावेइ
२त्ता आव संधी मंघाडेताए एयमाणतियं पचप्पिणह, ततेणं से अम्हे तं दिव्वं कुंडल है कि जो देशानुप्रिय ! इन दीन्य कंडल की मंधी पीछी जोर दे मुवर्णकागें राणा के वचन को मान्य
कर वहां सोने करने की अधिकरणी थी वहां आये, उस पर रखा, बहुत उपाय यावत् परिणामों से उस कंडकीसंध करने का चाहा परंतु करसन. रमन सुवर्णकारों भराजाकी पासगये और हा जोरकर जयही विजयहो बधाकर ऐमा बोले महो सामिन् मापने बाजामकोबोलाये यावन् संधीपनाने को दी से इन रोमेकर सोने परमे की किरकी पास गये, और बनेक उपायों किये परंतु किसी/
• प्रकाशकशनसरदर लावामुखदवसहायनी मालमसदनी
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