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धूयाए मावत ए देवीए अत्तया मल्लीएविदेह रायवरकन्नागाए मजगदिटे तस्मर्ण मजणगस इमीले सुबाहएदारियाए मजगए सयसहस्मंपिकलं जो अग्घेइ ॥ ७९ ॥ ततेणं स रुप्पीराया वरिधरस्म अंतियं एयमटुं सोचा नि मम्म मजणग जणियहामे दुध महावइ २त्ता एवं क्यासी जो जंग महल नारी तग पहरेत्थ गमगाए ॥ ३॥८॥ कालेणं तगं समरणं का नाम जगवए होत्था,तत्थणं वणारसी णामणधरीहात्था ॥तत्थगं संखणामं कामिराया होत्॥८॥ततेणं तीसे मल एविदेह
रायवर कण्जाए अन्नया कयाह तस्स देवस्स कुंडलजुयलस्त संधीविसंघडिएयावि देवी की आत्मजा मल्लीनाप की विदेह र ज पर कन्या का मजन देखने में आया. उस मज से प्रबाहु पुत्री का मज्जन लाख में भाग में नहीं है ॥ ७१ ॥ वर्षयरों की पास से ऐसः मुनकर ज म पर्व का स्नेह उत्पन्न हवा इस से दूत को बोला कर प्रतिबडि गना जैसे सब कहा यावत् वा दू। मिथिला नगरा जाने को निकला. यहीमग दूर हुमः ॥८० ॥ उस कार म मपय काशी नाम का देश था, उप्स में नासी गरी पी. शंख नामका माशी देश का राजा या ॥८१॥ एकदा मल्ली सरीका ने दिये हुवे कुंडल के युगल की संधी तूट गई इससे कुंभ रानाने मुवर्णकारों को बोसोकर कह
प पत्र मथनी का जाना हायन
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