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________________ सूत्र अर्थ 422 ** पछङ्गज्ञाताधर्मकथा का प्रथम स्कंध जुबलं गेव्हामो जेणेत्र सुन्नागारभिसियाओ जाव णो संचारभो सघडितए || ततेणं अम्हे सामी ! एयरस दिव्वस्म कुंडलजुयलस्स अन्नंसरिमयं कंडल जुबलं घडेमो ॥ ८२ ॥ तते से कुंनराया तीने सुवण्णगार सेणीए अंतीए एमट्ठेोच्चा निम्म आनुरते : ४ तित्रालयं भिउ डिगिडाले साह एवं वासी सेकसणं तब्भे कलायाणं भवह जणं तुम्भे इमस्स दिवस कुंडल जुयलस्सनो संचाए संघ संघ डित्तए, ते सुत्रण गाराणित्रित आणवेति ॥ ८२ ॥ तणं ते सुन्नगाग कुंभए रण्गा निव्त्रिमया आणत्ताममाणा जेणेव साई २ गिहाइ तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सभंडमतावगरणं मायाए महिलाए रायहाणीए प्रकार से हम उर की मन्धी पिला सके नहीं अो स्वामिन् ! हम इम कुंडल जैसे दूसरे कंडल आपको वनः देवें ॥ ८२ ॥ सुरों की पास से ऐमा सुनकर कुंभ राजा आयुक्त यावत् क्रोधित हुवा और ललाट में जिलो चढाकर ऐसा बोले, अरे ! तापास कैसी कला है कि जिससे इन दीव्य कुंडलों की संघ जोड पके नहीं. अयोग्य अकामी देखकर उ को देश निकाल किये॥८२॥ कुंम राधा से देश निकाल करागेल असे गये और २ लेकर मेलानगरी से निकलकर विदे Jain Education International For Personal & Private Use Only श्री मल्लीनाथजी का बाठवा अध्ययन 428 • ३६९ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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