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________________ सूत्र अर्थ 43 पट जाताधर्मकथा का प्रथम कुंभराया ते अरहन्नग पामोक्खा जात्र वाणियगा विउलेणं असणं ४ वत्थ गंधमल्लालंकारेणं जावं उसक किं वियति २ रायमग्गे मोगाढेय आवसेवियरइ २ पडिसिजइ २ता ॥ ६९ ॥ ततणं अम्हण्णग पामक्खिा संजुत्ता जेणेव रायमग्ग मोगांद आवाने तंत्र उवागच्छति रत्ता मंडग्र हरणं करोति २त्ता पडिभंड गि हांत २चा मगडी मग भरें। २त्त जगभीरपणे तेणेव उनागच्छ २त्ता पोयहणं सज्जेति संकार्मेति दविखणः णकुलेणं वाएणं जेब चंपाए जयरी तेणेत्र उत्रगच्छ २ चा पोपणे ते पोयलंबइ २त्ता मगडी सज्जेइ तं गणिमं ४ सगडी संकामेइ जात्र महत्थं पहुडे दिव्त्रकुंडल ज़वलं गेण्हंनि २त्ता जेणेव चदच्छाए अंगराया तेणेव उनागच्छ ख. गंधमाला अलंकार में सत्र मन्नान किया, हांसल माफ किया, र जयपंथ में उन के योग्य आदेश पनियों को विसर्जन किये ॥ ६२ ॥ अग्न प्रमुख सब उर मकान में गय ओरड किया दूसरा सन खरीदमा गाडे गार्ड यों भरी और समुद्र किनारे पर जाकर जान मज्ज के उस में सब सामान भरदिया और दक्षिण नकूल वन से चंपा नगरी तरफ चलेसमुद्र किनारा आनपर जहाज खडी करदी. गाडा गाडीसज्ज किये उसमें सब पाल भरदियं यावत् महा मूल्य For Personal & Private Use Only Jain Education International 418+ श्री मल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन ३५३ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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