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अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
२ च तं महत्थे कुंडलजुयलं जान उत्रर्णेति र ॥ ७० ॥ ततेनं चंदच्छाए अंगराया तंदिवं महत्थंच कुंडल जयलं पाडेछइ रत्ता ते अरहन्नगपामे क्वे एवं वयासी-तुम्भेणं देाणुपिया ! बहुणी गाभागर जात्र आहिंडह लवणसमुदंच अभिक्खणं २ पोयत्रहहिं उग्गह तं अस्थियाहिं कति कर्हित्रि अच्छे रए दिट्ठपुत्रे ? ॥ ततेणं ते अरहन्तग पामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी एवं खलु सामी । अम्हे इहेव चंपाए नयरीए अरहन पामेक्खा बहवे संजुत्तता नात्रा वाणियगा परित्रसामो, ततेणं अम्हे अन्नया कयाइ गणिमंच ४ तव अहीणं अतिरिक्तं जात्र कुंभस्सरन्नो उवणेमे। ॥ ततेनं से बाला नजरा यावत् दिव्य कुंडल का युगल लेकर अंगदेश के चंद्रछाय राजाके पास गये. और उनकी सन्मुख निजरानः रखा || 90 || अंग देश के चंद्रछाय राजा वैसे दीव्य महामूल्यवालेकुं डल ग्रहण किये, और उनको ऐसा बोले कि अहां देवानुप्रिय ! बहुत ग्राम नगर वाला सन्निवेश में फीरते हुवे तुमने आश्चर्य कारक किसी { स्थान क्या कुछ देखा है पहिले ? तब अरहरू प्रमुख वणिको चंद्रछाय राजा को ऐसा कहने लगे कि अहो स्वामिन्! हम सब नावों के वेपारीवणिक मीलकर यहां चंपा नगरी में रहते हैं. हमने गणिमादि चारों प्रकार के किराने भर कर समुद्र मार्ग से मिथिला नगरी में गये थे, जैसे हमने आपको नजराना किया
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• बायक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी •
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