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________________ पालघर्षकथा का प्रथम श्रुतरखान्य48+ पिया उग्गं करोमि, णो देवअणुपिया ! भिवाचा तं जपणं सझेदबिंद देवराया एवं वदति सच्चेणं एममट्ठे त दिट्ठणं देवाणुवियाणं इड्डी जुई जात्र परमे लपत्ते अभिसमण्णागए तं स्वामेमिगं दव णुप्पिया! जाव णां एवं भुजे २ करणयाए तिकडु, पंजलिउड पायवडिए एयमटुं विणएणं मुज्जो २ खामेइ; अरहन्नगरुन दुबे कुंडल जयले दलयति २ जामेवदिसि पाउंम्भूए तामंत्रदिन पडिगए ॥ ६६ ॥ तेतेणं से अरहन्नए णिरूवसग्ग मित्तिकद्दु, पडिमं पारेइ ॥६७॥ ततेणं ते अरहन्तग पामोक्खा जाव वाणियगा दक्खिणाणु कूलेणं बातेणं जेणेव गंभीरए पोयट्ठाणे तेव हूं. और सम को उनसर्ग दिया. परंतु तुम डरे नहीं तुमने तुमेध का त्याग किया नहीं इस से शक देवेन्द्रने जो काया वह सत्यही कहा है. यह मैंने तुम्हारी ऋद्धि द्यति यावत् पराक्रम प्रत्यक्ष देखा है. अ देवानप्रिय ! मेरे इस कृत्यकी मुझे क्षमाकरो यों कहकर वह देव अरक्षक श्रावक के पांच पडा और उस अपराधकी वारंवार क्षमा याची. अहन्नगको दो जेडे कुंडल के दिये और वह देव अपने स्थान पीछा गया { ॥ ६६ ॥ अरहाक श्रावकने उपसर्ग गय हुआ। जान कर प्रतिमा [भिग्रह ] पाली ॥६७॥ भव व अरहनक प्रमुख वणिको दक्षिणानुकुल पत्र से जां समुद्रका किनारा वहां आये वहां जहाज ठहराया. गाडा गाडीयों सज्ज किये, Jain Education International For Personal & Private Use Only *** श्रमल्लीनाथजी का बाबा अध्ययन 493+ २५१ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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