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नावदक-वाबवह्मचारी मुनि श्री बालक.
केणइ देवणवा ६ जिग्गंथाओ पावयणातो चालित्तएवा जाव विपारणामित्तएवा ॥ततैर्ण अहं देवाणुप्पिया! सक्कस्स देविंदरस को एयमटुं सदहामि; ततेणं मम इमेयारूवे अज्झथिए नाव समुपज्जित्था-गच्छामिणं अहं अरहन्नयस्स आतयं पाउब्भवामि जाणामिताव अहं भरहनगं किंपियधम्मे,नो पियधम्मे, दंढधम्मे णो दंढथम्मे, सीलव्धयगुण किं चालेति जाध परिचयइ, नो परिचयइ तिकडु, एवं संपहेमि २ ताओहिं पउज्जामि देवाणुप्पियाणं
ओहिणा आभोएमि २ उत्तर पुरच्छिमं दिसीभागं उत्तर वेडाब्वयंसमग्याति ताए उकिट्ठाए जाब जेणेव लवणसमुद्दे जेणेव देवाणुप्पिए तेणेव उवागछामि २ प्राणोपासक . उन को निर्णय के प्राचन से कोई देव दानव चलाने को यावत् विपरीत परिणमाने को मप it. अहो दवानुर्भय ! ने शक देवेंद्र की इस वन में श्रद्धा की नहीं इस में मुझे ऐमा अध्यवसाया कि अगहन श्रावक की पास ज'. और देखें क्या प्रिय है कि या नहीं है, रढ व हमि हद ध नहीं है, या जिगुण गैरकारित ह त य नहैं . यावत बाविस्थानना है या नहीं. एसा विचार कर अवधिज्ञ न रंग पर उप में तुम को देखा. और ईशानन वैक करक देव की दीव्य उ घ गति स इस लवण समुंद्र में तुम्हारी पास बाया
•प्रकागजावादर लाला मुखदेवमहायजीपालामादजी.
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