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________________ + जा 4. अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी पनि श्री अमोल णोयगए विहरइ ॥ ६४ ॥ ततेणं से दिव्वे पिसायरूवे अरहन्नगं समणोवासयं दोच्चपि तच्चं.पि एवं बयासी हंभो ! अरहन्नहगा ! जाव धम्मज्झाणोक्गए वेहरति । ततेणं से दिव्ये पिसायरूवे अरहनगं समणोवासयं धम्मज्झाणोवगए पासइ पासिता बलिय तरागं आसुरत्ते तं पे यण वाहण दोहिं अंगुलेयाहिं निगेण्डइ, २त्ता सत्तट्ट तलाईि जाव अरहनगं एवं क्यासी-हंभा! अरहन्नगं अगत्थय पत्थिय णो खलु कप्पति तक सीलवय तहेव जाव.. धम्मज्मज्झाणावगए विहरति । ततेणं से पिमायरूवे अरहन्नगं जाहे नों संचाए। णिगंथाओ चालितएवा तहेव संते जाव णिघिण्णे तं पायवाहणं सणियं २ शांत बन धर्म ध्यान करता हु विचरने लगा ॥६४॥ उस दीव्य पिशाचरूपदेव ने अरहना श्रयक को दो तनवार वैने ही कहा परंतु वह अरहनं श्रावक अपने पूर्वोक्त भावों से ही धर्म ध्यान चितवता हुवा विवरने लगा. जब अरहन्न श्रापक धर्म ध्यान में ही विचर । हुवा देखकर अत्यंत क्रुद्ध बनकर उस जहान को दो अंगुल से उठाइ और मात अठ ताल जितनी ऊंचे लेकर फीर उनको कहा कि अहो अरहन तेरे को शोट आदि यावत् खंडिन रना नहीं कल्पना है यावत् वह अपने धर्म ध्यान में स्थिर रहा. जब वह पिशाचरूप अरहनक श्रावक निग्रंथ के प्राचन। चलाने को समर्थ हुवा नहीं तब वह देव शांत बनकर • प्रा शक-गजामादुर लाला सुखदेवपागजी ज्यालाप्रमादजो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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