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हाताधर्मकायम अतरघ
तोमे अहं पोयरहणं दोहिं अंगलियाहिं गेहामि २ । सत्तटु तलपमागमेचाहि उडोहामं उन्विहाम अंता जलांस निकालेमि, जाणं तभं अदुइट वम्हे अममाहि. पत्त अकालचब जीवओ बबरावजासि ॥ ६३ ॥ ततण सं अरहन्नए समोवासए तद मणसाचे एवं बयासी-अहणं देवाणुपिया! अपहलए न मं समणोवामए अभिगय जीवाजवे,ना स्वल अहं मक्का केणइदेवणवा दाणवेणवा जाव जिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तएवा खभित्तएवा विपारणामिन एग, तुमणं जा पद्धा तंकरहा,तिकटु,अभीएजाब
अभिन्नमुहराग नयणन अदीण मिण माणसे निचले निफदं तुसिणीए धम्मजा. में पारकर मार तास जितनी ऊंची आकाश कर पानी की अंदर हलूं। जिस से तु आ.
द ध्यान मे दुःखित पनकर बममाधि पना मे कल में ही काल कर जीवन मे पृथक् होगा. ॥ ६ ॥ बस र
देवस ऐना उत्तर दिया कि ओदान प्रय! में अराम नाम का श्रामक जना का खजाना है, मुझे मित्र के प्रावन में कोइ दा अथवा दान व चकाने को मर्थन मजेमारा इच्छा होवे न तु कर. ऐ कह कर, भय सहित यावत् मुख के रंग में किसी प्रकार का विक र भाव नहीं लाता हुआ मदीनमन सहित निश्चलाई ।
. श्रीमल्लीनाथजी का पाठवा अध्ययन 4kt
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