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________________ अघिमो. ३४३ 4 अनुवादक निमचारीमान श्री अफ करय एवं व्यासी-नमत्यूणं अरिहंताणं जात्र संपत्ताणं, नइणं अहं एतो उत्सगातो मुंचामि तम कप्प परत्तते,जह अहणंएत्तो उमगा मच मे नातं तह पचक्खाएयचे तिकट्ट नागारं भत्त पञ्चवति ॥ ६२ ॥ ततण ३ पिपारूवे जणव अरहनगममागमए तणे उशगदत्ता अगहन्ना मणवायं व याम-हंभो! अरहन्नगा अपस्थियस्थिया जान परवजिया जो खल कप्पड तवमीलब्धय गण. वरमण पश्चरखाग पं.सहावामानि चालितएका एवं खोमेत्तएवा. खंडित्तवा भंजित्तएवा: उज्झितएग, परिश्वत्तएवा, तं जागं तु सीलन्वय जाव नपरिचयति ऐगा बांस किन भगगन को नमस्कार होणे यावत् क्ष मत हुए उन को नकार in यादेस - मुक्त हेमो मुझे पर मंथग पल। कलाता है परंतु जो इस उप पुक्त ना मझे । माया का पत्य सान: यों का कर भाग र सहर भक प्रत्यख्या या..॥ ६२ ॥ ३ नलका शव प्रहब का उस की ग्य और कह-यो! अमाथ। नेवल पर ई श्रीना भण्डम ! तझ श्रीर व्रत. गुण, वरमण स्पसाव पर मायचा . खं है। करन. ते रस्याग करना ना ना ? परन्तु पदि दशा यावत् सामना करना तो इस हम दो अंगु •काशक-मजाबहादुर लामबदेवमहायजी भालापानमा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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