SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + । षष्टाङ्ग ज्ञातामकथा का प्रथम श्रुनबंध -घेलाए भंजाति जाव आपुछते २ ता सगड सागडिया जोयंति २ ता. चंगाए नयरीए मझ मज्झेणं किंग्गच्छंति, जिग्गच्छित्ता जेणेव · गंभीर पोयपणे तणेव उगच्छइ २ तासगड सागडियं मोयंति २त्ता पोयवहणं सजेति २ त्ता गर्णिमस्स '. जाव चउब्धिहस्स्स भंडस्स • भरति तंदुलाणयसमियस्तय तेलस्सय घीयरसय, गुलस्तयः गोरसस्तय उद्गरसय भायणास्सथ उसहाणय भेसज्जाणय तणरसय कटुस्सय आवरणाय पहरणाणय, अन्नसिंच बहुणं . पोतवाहणाउगाणं दवाणं पोयवहणं मातिरता माहणं लिहि करण मक्खत्त महत्तंसि विउल असणं पाणे खाइमं साइमं उवखडावति, मित्तणाति आपुच्छति जेणेव पोयट्ठाणे तेणेव भोजन निमाकर यावत् उन को पूछ कर गांडाओं जीते और चंप नगरी के बीच में होते हुए जहां गंभीर नावा का पट्टण (समुद्र किना), वहां आये, वहां आकर गाडे छ.डदिये और- जहान तैयार की. फीर उन में गणिमाद्रि वारों प्रकार के निगने पर, और खाने के लिय गेह,' आदि का आटा, तेल, गुड, दधि, अ.दि गौरस, मीठा पानी खाने पकाने के, भाजन. औपधियों, तेल चूर्णादि, भैषध, तृण, कष्ट आगतण, नख, भूषण और इनसिवाय अन्य हुतसी वस्तुओं को जा समुद्रमें उपयोगी होवे यवत भरकर जई.जो में रखी. फीर शमतीथी, करण, नक्षत्र व मुह में निपुल 'अशादि बनाकर मित्र ज्ञानी को धर जहा मों में बैठ गये, अगहना प्रमुख यावत बाणों को उन को मित्र ज्ञाति सनन भ श्रीमल्लीनःयनी का आठवा अध्यन अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy