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________________ www याव होत्था, अहिंगए जीवा जीवे बन्नी ॥ ५४ ॥ ततेणं तेर्सि अरहन्नगामो. क्खाण संजत्तानाव वाणियगाणं अन्नयाकयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूबेमिहो कहा संमुल्लावे समुप्पजेत्था, संय खलु अम्ह गणिमंच, धरिमंत्र, मेजंच परिछिजंच, भंडगगहाय गडाय लवणसमुह पोयण वाहणे गं उग्गाहत्तए तिकटु, अन्नमन्नस्स एयम8 पडिसुगेति २, त्ता गाणमंच ४ गेण्हइ २ ता सगडी सगडं सज्जेति२ त्ता गणिमस्स ४. भस्म सगडा सगडीयं भरात २, त्ता सोहणसि. तिहि करण णक्खत्त मुहुत्तंति विउलं असणं पाणं खाइमं साइम उवक्डावति उवक्खडावेत्ता मित्त जाति भोयण श्राकों के सा गुणों से युक्त था. ॥ ५४ ॥ उन अरिहनक प्रमुख मा व्यापारियों में एकदा परहार ऐमा लाप हुवा कि गिनती होम के वैसी नालिएर दि ताला बारे सो धान्यादि, पालादि से मापकिया। नावे सा घतादि और परीक्षा कर लिया जावे सो सुवर्य रत्नादि उक्त च रों प्रकार के किरिया ने को लेकर लवण समुद्र में नीरमक वे जहाजों पर चड कर उपर के लिये अन्य प में जावे. सरने यह बात मान्य की और चारों प्रकार के कि.र पाने कर गाडा ओं सज्ज केये और उन में चारों प्रकार के किरिआने से भरे MAIT पात्रो रखे. फोर शुष नीथि करन, नक्षत्र व मुहूर्त में विपुल अशनादि बनाकर मित्र ज्ञाति सजनों को xes अनुवादक-समचारी मनि श्री अमोलक ऋषिभी+ प्रकाशक-राजावादर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादमा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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