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________________ +2+ 48+ षष्टांङ्ग जाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतरबन्ध ततेणं से दुए पडिपाहणारना एवंबुत्ते समाणे हटे, तुझे पडिसुषेति, पडिसुणेत्ता जेणेव सएगिहे जेणेव च उग्घंटआसरहे तेणेव उवागच्छह २ त्ता चाउघंट आसरहं पडिकप्पावेति २ त्ता दुरुढे जाव हयगय महया भड चडगरेणं सायाओ गिहामो णिग्ग ध्छइ २त्ता जेणेव विदेहा जणवए मज्झमझगं जेणेव महिलारायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥१॥५३॥ तेणं कालणं तेणं समएणं अंगणामं जणवए होस्था,तत्थण चंाए णामं जयरीए चंदच्छ!ए अंगराया होत्था॥तरणं चंपाए नयरीए अरहन्नग पामोक्खा बहवे संज त्ताणावा वणियगा परिवसति, अवाजाव अपरिभूया ॥ ततेणं से अरहन्नगे समोवासए प्रतिबुद्धि राजा के ऐमा कथन से वह दून हृष्ट तुष्ट हुवा और अपने घर आकर चार घंटवाला अश्वरथ तैयार किया और उस पर बैठकर यावत् अश्व, गज, सुभट, चेक वगैरह परिवार की साथ लेकर साकेतपुर गरी मे कालकर विदेह देश में मिथिला राजगध नी के तरफ जाने को प्रयाण किया. यह प्रथम | ५३ ।। उस काल उस समय में अंगनाम का देश था. चंपान.म की राज्यधानी थी. चंद्रच्छाया राजा था. उस चंप:नगरी में अरिहना प्रमुख साथ मीलकर व्यापार करने वाले वणिक रहते थे. वे ऋद्धिवंत यावत अपर भूत थे. उस में अरहनक श्रमणोपामक था वह जीवा जीव को स्वच्छ जानने गला Hश्री मल्लन थजी का आठवा अध्ययन 428 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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