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________________ स्वागच्छति नेणे उगच्छित्ता त तेति अरहन्नगा पामोवखाण बोगियगाणते परि.. यण जाव ताहि इंटहिं जाव बग्गृह अभिनंदलाय अभिमथुर, माणाय एवयासी-अज्ज तायभ य माउलय, भातिणेज, भगवयः, - महेणं अभिरक्खजमाणार चिज वह भद्दच पुणरबि लट्टे कयकजे अणह समग्गा कि यगं घरं स्वमा गए पामामो तिकट्ट, ताहिं सोमाहि निहाहि दहा हैं साप्पिंगमाहि, प्याहि, दिट्ठीहि, निरिक्खमाणा महुत्तांमतं संचिट्ठति ॥ ५५ ।। तओ समाणिएस : फलकम्भेमु दिन्नेमु, सरसरत्तचंदण दहर पंचगुलितलेमु अणुक्खत्तिासि धूमिपूइतेमु र मुद्दव तमु संसारियासु बलयवाहासु हिन इष्ट इभ शो म अभिनंदन दिया, व.र करने नुए एमा बोलने लगे. अहे? आर्य. .... अहे नत, भाग, ग्रह माना,हामी मुव मद्र रक्षा हो चिनीमा, तुमगाणा'. तुम्हर क सिदि होवो, और तुप मा का कार शिघ्रा मा हम दख. ऐ... करार: वापसो.नि.दीर्घ पिया महिर (नदारदव के इच्छ ) मरः दुई ही में दखो हो ये दु. बड रहे ॥ ५५ ।। उन साय त्रिकोंन पुष्ा म बलिकर्म किया. नूरत के घोले रे चंदन से पांदा अंगुलयों से नवा को छपे दिये, फोर धूप से प्रकारभारादरमाला बदव महायज माहादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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