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________________ - 48 ध पठान ज्ञातावर्षकथा का प्रथम- . चउरामिति वाससय सहस्साति समण परियागंपाउणंति २त्ताचुलसीइ पुवासय सहस्साई . सव्वाउयं पालइत्ता, जयंते विमाणे देवत्ताए उववण्णा ॥ २४ ॥ तत्थणं अत्थेगतियाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाई हिंई पण्णत्ता ॥तस्थणं महब्बल वजाणं छहं देवाणं देसूणाति बत्तीसंसागरोवमातिदिति, पण्णत्ता महब्बलस्स देवरस पडिपुण्णाति बत्तीसं सागरोधमाति ट्ठिति पणत्ता॥२५॥ ततेणं ते महब्बलदेववज्जा छप्पियदेवा जयंताओ देवलोयाओ आउक्खएणं ट्रितिक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयंचइत्ता इहेब जंबूट्टीवेदीवे भारहेवासे विसुद्ध पितिमाति वससुय रायकुले पुय पत्तेयं २ कुमारत्ताए पच्चाया, तंजहा-पष्टिबुद्धा इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पि हुव. ॥ २४ ॥ वहां कितनक देवों की बत्तीस सागरोपम की स्थिति कही. है वैसे ही महाबल छोडकर छ देव की स्थिति कुछ कर बत्तीस सागरोपमकी हुई और महाबल देवकी बत्तीस सागरोषम की पूरी स्थि ईई ॥ २५ ॥ प्रहाबल सिवा छ देवों वहां से आयुष्य, स्थिति व भव का क्षय होने से अंतर रहित कर इस जम्मूद्रीप के भरत क्षेत्र में विशुद्ध मातापिता के वंश में राजकुल में कुपारपने उत्पन्न हुने, जिन के HIम-१ प्रतिबुद्धि इक्षाग देश के राजा का पुत्र २ चंद्रछाया अंगदेश के राजा का पुत्र ३ शंख श्री मल्लीनाथजी का आठवा अध्ययन 448 अर्थ | १. | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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