SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ * अनुगदक-पलब्रह्मचारीमान श्री अयो के ऋषिजी मासहिं अट्ठारसहिं अहोरत्तेहिं समप्पात; सत्यपि सीह णिकीलियं-छ हेवासहि दोहिमासेहिं बारसहिं अहो रत्तेहिं समप्पात ॥ २२ ॥ ततेण ते महबले पामाक्खा सत्त अगगारा महालयं सीहनिकोलिय अहासुत्त जाव आराहित्ता ॥ जगेव थर भगवंते तेणेव उबागछति, तेणेव उवागछित्ता थर भगवंते ! वदात णमंसंति २त्ता बहुणि चउत्थ जाव विहरंति ॥ २३ ॥ ततेणं ते महन्वल पामोक्खा सत्तअणगारा तेणं उरालेणं सुक्खाभुक्खा जहा खंदओ, गवरं थेरे आपूच्छित्ता (पाठांन्तर चारु पव्यय ) वक्खार पव्ययं दुरुहंति जाव दोमालियाए सलेहणाए सवीसंभत्तसयं अणसणं मासिंह क्रीडा तप छ वर्ष दो मास व बारह अहो रात्रि में पूर्ण होता है।॥२२॥ महासिंह क्रीडा तप की सम्पन प्रकार से आराधना करके उक्त सासों अनगार स्थविर भगवंत की पास गये और उनमें को वंदना नमस्कार क के चउत्थ भक्त यावत् तपश्चर्यासे । संयम से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ॥ २३ ॥ ऐमा उदार शुष्क तप से स्कंधक जैसे उक्त सातों अनगार हुने और स्थविर को पूछ कर वक्षस्क र(वास)पर्वतपर गये.यावतू दो मासकी संलेखनासे १२० भक्त अनशनका छेदनकर ८४ हजार बर्ष *साधु पना पालकर सब मील कर ८४ लाख पूर्व का आयुष्य पालकर जयंत विमान में देवता पने उत्पन्न प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy