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* अनुगदक-पलब्रह्मचारीमान श्री अयो के ऋषिजी
मासहिं अट्ठारसहिं अहोरत्तेहिं समप्पात; सत्यपि सीह णिकीलियं-छ हेवासहि दोहिमासेहिं बारसहिं अहो रत्तेहिं समप्पात ॥ २२ ॥ ततेण ते महबले पामाक्खा सत्त अगगारा महालयं सीहनिकोलिय अहासुत्त जाव आराहित्ता ॥ जगेव थर भगवंते तेणेव उबागछति, तेणेव उवागछित्ता थर भगवंते ! वदात णमंसंति २त्ता बहुणि चउत्थ जाव विहरंति ॥ २३ ॥ ततेणं ते महन्वल पामोक्खा सत्तअणगारा तेणं उरालेणं सुक्खाभुक्खा जहा खंदओ, गवरं थेरे आपूच्छित्ता (पाठांन्तर चारु
पव्यय ) वक्खार पव्ययं दुरुहंति जाव दोमालियाए सलेहणाए सवीसंभत्तसयं अणसणं मासिंह क्रीडा तप छ वर्ष दो मास व बारह अहो रात्रि में पूर्ण होता है।॥२२॥ महासिंह क्रीडा तप की सम्पन प्रकार से आराधना करके उक्त सासों अनगार स्थविर भगवंत की पास गये और उनमें को वंदना नमस्कार क के चउत्थ भक्त यावत् तपश्चर्यासे । संयम से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे ॥ २३ ॥ ऐमा उदार शुष्क तप से स्कंधक जैसे उक्त सातों अनगार हुने और स्थविर को
पूछ कर वक्षस्क र(वास)पर्वतपर गये.यावतू दो मासकी संलेखनासे १२० भक्त अनशनका छेदनकर ८४ हजार बर्ष *साधु पना पालकर सब मील कर ८४ लाख पूर्व का आयुष्य पालकर जयंत विमान में देवता पने उत्पन्न
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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