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जनधर्म कथा का प्रथम श्रनस ध
विहरति, जइणं महवल्लयज्जा छ अणगारा छटुं उसंपजित्ताणं विहरइ, तएणं से महव्वले अणगारे अट्ठमं उपसंपाजता विहरंति ॥ एवं अहे अट्ठम तो दममं अहदसमतो दुबालसम ॥ १८ ॥ इमे हयाणं वीसाहिय कारणहिं असविय बहुली कएहि तित्थयर जामगायं कम्मं नि तेस तंजहा (गह!) अरिहंत सिद्ध पवयण, गुरु थेरे बहुस्सुए
तवरलासु ॥ वच्छलयाय तसिं, अभिक्ख जागोवओगेय ॥१॥ सण विषय आवस्स. शेजा अन्य समगार तलाकथनद महाबल अन्गार पीला करते थे बछ चोला करने तर महाबल अ गार वोला करते थे. इस तरह गुप्तपने अधिक सपश्चर्या करने (माया सेवनसे) स्त्रनाम कर्म उपार्जन किया ॥ १८ ॥ निमत बर ६ क प २ संवन ता कर नाम कर्म की उपकी . इन पप स्था के नाम---१ रिहंत, २मिद्ध, ३. शस्त्र ४ गुरु
स्थविर पुत्रः, यत् पण्डित. ७ प हातों के बारम्भार गुण नुवाद करने से, ८ ज्ञान का वारकर पनेरने मे१ एकम .१० गुरु इत्यादि पूजा जना में विन्य अर्थ नमा भात ख. ११ वी, यासी, पर्ख..चौका और पं . इ. वर आपदयों को।
सबसम ने बंर नहीं होता है तो साधुपना में कैसे होगे ? इस शंका का निवारण के लिये स्त्री नाम कर्म के उपार्जना में विधात्व अथवा शाश्वदन की प्राप्ति माया करने से होना संभवत हे
श्रीमल्लनाथ जी का अंठ अध्ययन
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