________________
अनुवादक-पारमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
बहहिं च उत्थछट्ठम अपाणंमावेमाणे विहाइ ॥ १६ ॥ तएणं तसिं महाबलपमे क्खागं सतह अणगाराणं अण्णयाकयाइं एगओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुपजित्या जण्हं अम्हं देवाणुप्पिया ! एगंतवोकम्म उवसंपजिणं विहरइ, तण्णं अम्हेहिं सर्वहिं साई तबो कम्म उवसंपजित्ताणं विहरइए तिकटु, अण्णमण्णस्स एयमढे पडिमुणेइ २ ता बहुहिं चउत्थ भत्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरति ॥ १७ ॥ तएणं से महत्वलेअणगारे इमेणं कारणेणं इत्थणाम कम्मं गोयं निव्वंतिसु, जइणं ते महव्वल बजा छ अणगार
चउत्थं उपस पजित्ताणं विहरंति, तएणंसे महवले अणगारे छड्ढे उवसंपजित्ताणं है अत्मा को भावते हुए विचरने लगे. ॥ १६ ॥ एकदा महाब.. प्रमुख सातों अनगारोंने मालकर ऐना, वार्तालाप किया कि अहो देवानुप्रिय ! जैसे अपन एक सरिखा तर कर्म करते हुवे विचरते हैं वैसे ही समान सदैव ता करना. साने यह बात स्वीकार की. ॥१७॥महाबल अनगार ने आगे कहेंगें उस कारन से स्त्री नाम कर्ष निष्पन्न किया. जब पहावर अनगार मिवाय अन्य छ स धुनों एक उपवास करते थे तर महाबल अनगर बला करते थे, जब अन्य छ अनगारों बला करते थे तब महाबल अनगार तेला करते थे।
• महाशक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजा.
मर्थ
*
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org