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षष्टांग ज्ञाताधर्म था का प्रथम श्रुतरकन्ध 48
पासित्ताणं पडिवुद्धा जाव बलभद्दो कुमारीजाओ जुवरायाविहात्या ॥ ९ ॥ तस्सणं महबलस्तरपणो इमे छप्पिय बालवयंसयागी होत्था, तंजहा अपले, धरणे, पूरणे, वन, वेसमणे, अभिचंदे; सहजाया जाव संबढियात णिच्छरियवे तिकटु, अण्णम एयमटुं पडिमुगति मुहं सुहेणं विहरइ ॥ १० ॥ तेण कालेणं तेणं समएणं धम्मथोषथरा जणेव इंदकुंभउजाणे तणेव समोसड्डे, परिमाणिग्गया, महब्बलोविराया णिग्गयाओ,धम्मोकहिओ ॥ महव्वलेणं धम्मं सोचा ज णवरं देवाणुयावत् बलभद्र कुमार युवराज हुवे ॥ ५॥ महादलराजा को छ ब ल भित्र राजा थे अर्थात् इन छ को बलभद्रकी साथ बचपनसे ही मित्राचार था. जिनके नाम १ अंचल २ धारण ३ पूण ४३सु ५ वैश्रमण और १६ अभिचंद वे सब स थ जन्मे हुने साथ ही वृद्धि पाये हुरे यार साथ ही संसार त्याग करने के श्रिय वाले थे. और इसी तहर वे परस्पर बचन देकर सुख पूर्वक विचरते थे. ॥१०॥ उप काल उस समय में धर्मघोष स्थ वर इन्दकुंभ उद्य न में पधारे परिषदा वंदन करने को नीकली. महावल भी नील धर्म कथा सुनाई. मावल राजा धर्म श्रषणा कर हर्षित हुए और कहने लगे कि आप के वचन सत्य हैं मन आप के वचन इच्छे हैं. अहंत देवानुप्रय ! मेरे छबाल मित्रों को पूछ कर बलभद्र कुमार को राज्य देकर
श्री मल्ल थी का आठवा अधायन 48
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