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42 अनुवादक-पालवारीमान श्री अमालकापजा
धम्नघालणामथेरा पंवहिं अणगारसएहिंसद्धिं संपी वुडे पुवणुपुचिरेमाणे गामाणुगाम दुइजमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे, जेणव इंदकुभेणामं उजाणे तेणेव, समोटे संजमणंतवासा अप्पाणंभ वेमाणवित र.ते ॥ ७ ॥ परिसाणिग्गया, बलोविरायाणग्गओ, धम्मसुच्चााणसम्म जे णवरं महालकुमारं रजेट्ठावइ २ त्ता. सयमेव वलराया थेराण आंतए पव्वइए एक्कारस अगविउ, बहुणिवासाणि समण्णं परियायं पाउगित्ता जेणव चारु पचए मासिएणं भत्तेणं अप्पणेणं केवलं गउणित्ता
जात्र सिद्धे ॥ ८ ॥ तएणं सा - कमलसि र अण्णयाकयाई जाव सहि सुमिणे विचरते थे. ॥ ६ ॥ उस काल उस समय में धघोष स्थ वर पांच सो अनगार की साथ पूर्वानुपू च ने ग्राम नुन म मिचरते मुख पूक विहार करते इन्द्रकुंभ उद्य न में पधारे और वहां संयम व तप स आत्मा को भावते हुवे व वरने लगे ॥ ७ ॥ परिषदा धर्मोपदेश सुनने को नीकली बलाजा भी की निकला. धर्मघाप अनगार की पाम से धर्म श्रण कर कहा कि में महाबल कुमार को राज्याप्सन पर बैठाकर आपका पास दीक्षा लेलंगा. यावत् वह बलरजा स्थविर की पास दीक्षित हुए. अग्यारह अंगके जानकार हुने. बहुत वर्ष माधु की पर्याय पालकर चारु पर्वत पर एक मास के भक्त प्रत्याख्यान सहित किल ज्ञान प्राप्त कर सिद्ध बुद्ध व मुक्त हुवे ॥८॥ एकदा कमल श्री स्वामसिंह देखकर जाग्रत
० प्रकार राजावादुर लाला सुख वमहायडकालापस
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