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षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम तमन्न
गाए रायहाणीए उत्तरपुरच्छिमेदिनीभाए एत्थणं इंदकुंभणाम उजाणं होत्था॥३॥तत्यणं वीतसोगाए रायहाणीए बलेनामंराया होत्था ॥ तस्सणं बलस्मरणो बारिणीपा मक्खंदविं सहस्त उवरोहे होत्था॥४॥तएणं सा धारिणीदेवी अन्नयाकयाइ सीहे सुमिणे पासित्तागं पडिबुद्धा जाव महव्वलेयदारए जात्र उम्मकबालभावे जाव भोग समत्ये ॥ ५ ॥ ततणं तं महब्बलं अम्मापियरी, सरिसियाणं सरिस्म वयाणं कमलसिरि पामोक्खागं पंचण्हरायवरकन्नासयाणं एगदिवसेणं पाणिगिण्हावेति, पंच
पासायसया, बरगया, पंचसतोदातो जाव विहरते ॥ ६ ॥ तेणं कालणं तेणं समएण नव योजन चौडी बारह य जन की लम्बी यावत् प्रत्यक्ष देवलाक समान है ॥२॥ उस वीतशोका राज्यधानी की शिनकून में इन्द्रकुम्भ नाम का उद्यन है ॥ ३ ॥ उस वितशाका नगरी में बल राजा राज्य करता था. उस को धरणी पमुख एक हजार पट्टरानियों थी. ॥ ४ ॥ उस धारणी देवीने एकदा स्वप्न में सिंह देखकर ज गृत हुई गारत् महा बल नाम का कुपार हुया. वह महाबल बाल भाव मे मुक्त होकर भग भागने योग्य हुवा ।। ५ ॥ उस समय पहावल कुंगार के मातापमान उन के समान, वय बल व रूपाली पांच मो राज कन्यानों की पाथ एक ही दिन में पाणिग्रहण कराया, पां सों प्रासाद बनवाये और पांच सो दात दायच में आई यावत् उन की साथ सुख भोगवते
4280 श्रीमल्लानाथना का आठवा अध्ययन 18+
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