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________________ १. अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख कपनी+ ॥ अष्टम अध्ययनम् ॥ जातिणं भंते ? समणेणं भगचया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स जायज्झयणस्स अयमट्र पण्णत्ते, अट्रमस्मणं भंते ! णायझयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं के अट्टे पन्नत्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहवे जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहवासे मंदरस्स पन्वयस्स पच्चत्थिमणं णिसढस्स व सहर पव्वयस्म उतरेग, सीओयाए महाणदीए दाहिणणं, सहावहस्स वखारपव्वयस्म पञ्चत्थिमेणं. पच्चच्छिमे लवण समुदस्स पुरथिमेणं एत्थणं सलिलावईणाम चकवट्टी विजए पण्णत्ता ॥ तत्थणं सलिलावइ विजए वीयसोंगाणामं रायहाणी पन्नत्ता, नवजायण विछिण्णा जाव पच्चक्ख देवलोय भया ॥ २ ॥ तीसेणे वीतसो प्रकाशक राजबहादर लाला सुखदवमहायजी ज्याला प्रसदजी . अर्थ __ अहो भगवन् ! श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता धर्मकथा के मानवा अध्ययन का उक्त अर्थ कहा, तम आठमा अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? ॥ १॥ अहो जम्बू ! उम काल उम समय में इस जवीप के पहाविदह क्षेत्र में मेरु पर्वत के पश्चिम में निषध नाम का वर्षधर पति से उत्तर में मीता मडा गदी के दक्षिण में मखावह वक्षार पर्वत की पश्चिम में और पश्चिम लवण समुद्र की पूर्व में साललायती नामका चक्रवर्ती का विजय है. उस सलिलावती विनय में वीत शाका नाम की राज्धानी है व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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