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अथ
अनुवादक बालब्रह्मचारा मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पिया ! छप्पिएबालवयसयं पुच्छामि, बलभद्दच कुमारं रजेावेमि जाव जेणेव छप्पथ बालवयं आपुच्छइ; तएणं छप्पिय बालवयंसए महव्वलरायं एवं वयासीजइणं देवाणुपिया ! तुम्मे पवयह अम्हे के अन्ने आहारेवा जाव पव्त्रयामो ॥११॥ तएणं महव्वलेराया छप्पिए बालवयंसए एवं वयासी जइणं देवण.प्पया ! तुब्मे मएसद्धिं जाव पञ्चयह, ताणं तुब्भगच्छेह जेट्ठपुत्तं मएहिं २ रज्जेहिं रट्ठेहि ठ पुरिस सहर बाहिणीओ सियाओ दुरूढासमाणा पाउन्भवह || १२ || तरणं छप्पिए बालवयंसए जब पाउ भवति ॥ १३ ॥ तएण से महव्वल अंतिए छप्पिए बाल
मैं आप की पास प्रत्रजित होऊंगा. यावत् अपने छदा बाळ मित्रों की पास आये और उनको अपना वृतां । कहा और उन की अज्ञा मांगी. तब छ ही मित्रोंने कहा कि अहो देवानुप्रिय ! जब तुम दीक्षा अंगीकार करते हो तब हम को किम का आधार है इस से हम भी आप की साथ दीक्षा लेंगे ॥ ११ ॥ तत्र महाबल राजा ऐसे बोले कि अहो देवानुप्रिय ! जब तुम मेरी साथ दीक्षा अंगीकार करना च हते हो तब तुम अपने स्थान पीछे जाओ और ज्येष्ट पुत्र को रज्य देकर महत्र पुरुष वाहिनी शिविका पर
आरूढ होकर यहां आजाओ || १२ || तब वे छही बल उक्त कथनानुसार कर के महाबलराजा को पास आये || १३ || अपने छड़ी बाल मित्रों को अपनी पाने दिक्षा लेने के लिये आये हुवे देखकर
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० प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवमडायजी ज्वालाप्रसादजी
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