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षष्टमांग ज्ञाताधर्मक्रया का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
पलंबमाण सुकय पड़उत्तरिजे मुदिया पिंगलगलिए, णाणामणि कणगरयण विमलं । महरिह निउणी वियमिसिमिसंतसु लिलिट्ठ विसिट्रलटू संट्रिय पसत्थआविद्धवीरवलंए. किं बहुणा कप्परुक्खकए चत्र अलंकियविभासिए नरिंदे, सकोरंटमल्लदामेण छतेणे धरिजमाणेण च उचामर वालवीइयंगे मंगल जय२ सहकयालोए, अणेग गणनायक दंडनायक, राईमर, तलवर, माडंबिय,कोडंबिय, मंति,महामंति गणग,दोबारिय, अमच्च,
चेड, पडिमद्दणगर, णिगस,सेट्ठि, सेणावइ, सत्थवाह, दूध, संधिपाल सद्धिं संपरिवुडे,.. काओं से बनी हुई पीली अंगुलीयोवाना, जिरका विमल व बहुमूल्यवाले विविध प्रकारके मगि,कनक,रत्नोंके निपुण कारिगरों स बनाये हुवे अच्छी तरह से संधी जोडी हुई व प्रशस्त रीति से पहिना वीर वलयनामक भूपणाला अर्थात् भूरवीर तथा अन्य से पराभव नहीं पाये ऐसाराजा दीप्त हुवा. किंबहुना विशेष क्या कहें] कल्पवृक्ष समान अलंकारादि से अलंकृत व वस्त्रादि से विभूषित राजा कोरंट वृक्ष के पुष्पों की माला, छत्र धारण कराता हुआ, चार चमर विजाते हुवे अनेक गण नायक, दंडनायक, राजेश्वर, तलवर, के
ल, माडं वय थोडे ग्राम का ठाकुर, कौटुम.क, मंत्री, महामंत्री, गणक ज्योतिषी] या भंडारी, द्वा आमात्य, चेटक, पृष्ट मर्दक-अंगरक्षक, निगम-व्यापारी, अंष्टि नगर का शेठ, सेनापति, सार्थवाह, दूत, व संधिपाल मुलह करानेवाले, इन सब परिवार से परवरे हुवे उज्वल महामेघ में से नीकेला हवा. १०
भावार्थ
48 उत्क्षिप्त (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन 42
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