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मुनि श्री अमोलक ऋषि
धवल महामह निग्गए विवहगहगण दिप्पंतरिक्ख तारागणाण मज्झै ससिव पियदसणेणरवइ, मजणघराओ पडिमिक्खमइ २ त्ता जेणव वाहिरिया उबट्टाणसाला तेणव ज्वागच्छइ २ त्ता सिहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सणिण्णे ॥२४॥ तएणं से सेणिएराया अप्पणो अदुरसामंते उत्तर पुरच्छिमे दिसिभाए अट्ठ भद्दासणाइ सेयवत्य पव्वत्थयाति, सिद्धत्यमंगलो वयारकयसंति, कम्माइ स्वावेइ २ त्ता, अप्पणो अदूर सामंते णाणामणिरयणमंडियं अहिय पेच्छणिज्ज रुवंमहम्ग वरपट्टणुंगयं सह
बहु भत्तिसयचित्तट्ठाण ईहा, मिय, उसय, तुरंग, गर, मगर. विहग, वालम, किन्नर, ८८ के समुह में देदीप्यमान क्रोडाक्रोड तारा में रहा हुवा चंद्रमा समान मियदर्शनीय गजा मंजन गृह-स्नान गृह से नीकलकर बाहिर की उपस्थानशाला [ राजसभा ] में आया और वापर पूर्वाभिमुख से सिंहासन पर बैठा. ॥ २४ ॥ अब श्रेणिक राजाने अपनी पास ईशान कौन में आठ भद्रासन करवाये कि जो भद्रामनवत वस्त्र से ढके हुये थे. उन विघ्न नाश करने के लिये सरसव का मंगलिक उपचार ( पजा) किये थे. ऐसे आठ भटासन तैयार कीये. फीर श्रेणिक राजाने अपनी पास में एक पडदा
माया. वह पडदा अनेक प्रकार के चंद्र कान्तादि मणि, करकेतनादि रत्नों युक्त, पहुत प्रेक्षनीय,. बहुन मल्यवाला प्रसिद्ध उत्तम नगरोंमें बनाया हुवा अथवा बहुम यस्न से रखा वह नीकाला हुवा,' शाहमृग ।
मशक-राजावहादुर लाला सुरु
भावार्य
यजी ज्वालामसादा
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