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रीमान श्री अमोलक ऋषिजी. अनुवादक-बालब्रह्मच
पुणो पुणो कुल्लाणगपत्रर मजणविहीए मंजिए, तत्थकोऊसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणग . पवर मजणावसाणे पम्हल सुकुमाल गंध कासाइ लूहियंग, अहयसुमहग्घ दुसरयण सुसंवुए, सरस सुरभिगोसीस चंदणाणुलित्तगत्ते, सुइमालावण्णग विलेवणे अविद्ध मणिसुवणे कप्पियहारडहार तिसरय पालंब पलंबमाण कडिसुतयकय सोहेपिणद्ध गेविज्जे अंगुलिज गललियाकयाभरणे णाणामगि कणग तुडियथंभिय भुए अहियरुव
सस्सीरीए कुंडलुजोइयाणणे, मउडदितासरए, हरुच्छय सुकयरइयवत्थे; पालंब मजन कीये पीछे प्रक्ष्य समान सुकोमल सुगंधित कापायिक बखों से शरीर स्वच्छ कीया. मपकादि उपदन हित बहुमूल्यवाले वस्त्र शरीर पे धारन कीये, अच्छा सुगंधित गोशीर्ष चंदन से गात्रों को विलेपन किया, पवित्र पुष्पों की माला, नाना प्रकार के वर्णक व कुंकुमादि विलेपन कीय. मणि व मुवर्ण के आभरण पहिने, अठारसरा, नवसरा, तीन मरा हार व लम्मा लटकता हुवा कटि सूत्र से शरीर मुशोभित कीया, कण्ठ में आभरण पहिने, व अंगुलिये अंगुठियां पहिली, भव्य मनोहर विविध प्रकार के आभरण धारन किये, हाथ में कडे, भुना में भुनबंध, वगैरह आभरणों से इन के हस्त स्तंभ समान हवे. इस तरह अधिक रूप से शोभायमान,कुंडल(कर्णाभरण विशेष)ने सुशोभित मुखवाला,मुकुट से देदीप्यमान, सिरवाला हारों से आच्छादित होते अच्छे हृदयबाला,लम्बा लटकने से अच्छा दुपट्टा रूप उतरासन वस्त्रवाला, मुदिनी
GIRI-राजाबहादुर लाला मुखदायसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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मामा
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