________________
समणिवा पंचपसे महव्ययाति पाडियाति भवति, सेगं हि भत्रेचे बहुणं समणाणं बहुणं समणीणं बहुणं सावयाणं बहुगं सावियाणं जार होलणिज्जे जहावा मा भोगवतिया ॥२१॥एवं रक्खियाविणवरं जेणेव वाघरे तणव उवागच्छइ २त्ता मज्जसं विहेडेति २त्ता रयणकरंडगाओ त पचसालिअक्खए गिण्हइ २त्ता जेणेव धणे सत्यवाहे तेणव उवागच्छइ २ चा पंचसालिअक्खए धरतहत्थे दलयति २त्सा ततेणं से धणे
सत्थवाहे रक्खियं एवं वशासी किन्न पुत्ता ! तेचच एए पंचसालिअक्खए उदाहु अन्ने? निगल जाने से भोवती को कार्य पीला वैसे जो कोई मधु साध्वी पांच पहावत अंगीकार कर रसना क लोलपी धो वा भंग करेंगे वे इस भव में बहुत मधु साधी श्रकक व श्रचिका में हलना, निंदा व खिमना पायेंगे व परलोक में अनामनार का परिभ्रमण करेंगे.॥ २१ ॥ जैसेभांगरती को धन्नास वाहने कहा वैसे ही रक्षिताको बोजाकर कहा और उन से पांच दाने मांगे. जिसो वह अपना रहका महमें गइ और मंदक खोलकर दागी के करंडो से पांचों अखाडत शालीक दाने लेकर धन्ना सार्थकादिय. तब उस
क्षिता को धनामार्थवा एरे बोले कि अहो पुत्र! जो मैं श ले के दाने दिये य वेही यह है कि अन् ? 17 रक्षिताने उत्तर दिया कि अहो तात! आपने जो शाली के दाने दिये थे वही हैं परंतु दूसरे नहा है. अहो. पुत्र::।
नादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक सजावहादुर लाला मुखदर सहायजी ज्वालाप्रश्नाद जी .
अर्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org