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दक-माला ह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋपिज
दारया होत्था तंजहा-धणपाले,धणदेवे, धणगोवे,धणरक्खिए॥३॥तस्सणं धणसत्थवाहस्स घउण्हं पुत्ताणं भरियाओ चत्तारि सुहाओ होत्था, तंजहा-उज्झिया, भोगवतिया, रक्खिया. रोहिणिया ॥ ४ ॥ ततेणं तस्स धस्स अन्नयाकयाइ पव्वरत्ता वरत्तकाल ममयंसि कुटुंबजागरणा जागरमाणे जाव इमयारूचे जाव समुप्पजत्था-एवं खलु अहं रायगिह गयो बहुणं राजा ईसर जाव पभिताणं सयस्सय कुटुंघस्स बहुनु कजे मुय कारणेसुय कोटंबे-मते-गुज्झे-रहस्से-णिच्छए--ववहारेसुय आपुछणिज्जे पडिपुछणिजे
मेढीपमाणं आहारे आलबणे चक्खू पमाण भूते सवकज्ज बढावए, तणणजईणं मएगयं १३धनगोप व ४ धन रक्षित ॥ ३ ॥ उस धन्ना सार्थवाह को चार पुत्रकी चारपुत्र वधुनों थी. जिन के नाम
उज्झना २ भोगवती ३ रक्षिता और ४ रोहिणी ॥ ४ ॥ एकदा धन्ना सार्थवाह का प्रथम रात्रि गये पीछ पोछली रात्रि में कुटुम्ब जागरणा जागते हुवे ऐसा अध्यवसाय हुघा कि मैं राजगृही नगरी में बहुन
राजा ईश्वर यावत् प्रभृतिक के व अपने कुटुम्ब के बहुत कार्यो, कारण में, कुटुम्ब पें, मंत्र करने में, रहस्य -बातों में, गुह्य बातों पें, निश्चय व व्यवहार में पूछने योग्य हूं. वारंवार पूछने योग्य हूं, मंदी प्रमाण आ
धारभूत, व आलम्ब भूत हूं, शरीर में चक्षु जैसे आधार मून हैं वैसे ही मैं आधारभूत हूं, सब को प्रमाण
• प्रकारक-जावादर ळाका मुखदरमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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