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षष्टांग शाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 1
सिवा वयंसिवा भगंसिवा, चुयसिवा, मुयंसिवा, लुग्गसिवा सडियंसिवा पडियंसिवा विदेसत्थंसिबा, विप्पसियंसिवा इमस्स कुटंबते केमन्ने आहारवा आलंबणेवा पडिवंधेवा भविस्तइ ? तं सेयं खल ममकलं जाव जलंते विउल असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता, मित्तनाइ चउण्हय सुण्हाण कुलघरवग्गं आमतेत्ता, तमित्तनाइनियग सयण चउण्हय सुण्हाणं कुलघरवगं विपुलेणं असणं पाणं खाइमं साइमं धूव पुप्फवत्थ गंध जाव सकारेत्ता सम्माणसा, तस्सेयांमत्तणाति चउण्हय पुण्हेसुणं कुलघरवग्गरसय
पुरओ चउण्डं सुण्हाणं परिक्खपट्ठयाए पंचपंच साल अक्खएदलइ २ त्ता जाणामित्ताव भून हूं. अर्थात् मेग कथन सब को मान्य, है, सब कार्य में मुझे आगे बढाया है पा मप कार्यों की मैं वृद्धि : करनेवाला हूं. परंतु न मालुप मेरे ग्रामादि जाने से, वायू मादि की व्याधि होने से, शरीर भंग होने से, चवने से, लुप्त होने मे, मरने से, पदने से, इत्यादि कारनों से मेरे वियाग में इस कुटुम्ब को कौन प्रा. धार दे, अवलम्बन दे, अकार्य करन में प्रतिबंध करे, इस लिये कल प्रभात में विपुल अशन, पान. खतिम स्वादिम बनाकर मित्र, ज्ञाति, चार वधुभो व कुलघर वर्ग को बोला व उन को विपुल अशनादिका भोजन कराकर बहुत पुष्य वस्त्र गंध मारयाकार मे सत्कार सन्मान देकर उन सब की सन्मुख चरों वधुओं की परीक्षा करने के लिये पांच शालो धान्य के प्रखंड दाने देना चाहिये, इस में से कौन किस तरह
१ धन्य के खले में जो लकडी रखने में आती है उस मेढ़ी कहते हैं,
गाहणी का सातवा अध्ययन RIP
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