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षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रवस्कन्ध 4
॥ सप्तम अध्ययनम् ॥ जइणं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं छट्रस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ता, सत्तमसेणं भत्ते ! नायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जबुं ! तेणं कालेणं तेणं समरणं रायगिहेणामं णपरे होत्था, तत्थणं रायगिहे
णयर सेणिराया होत्था तम्मण रायागिहस्स जयरस्स उत्तर परत्थिमेदिसीभाए __ सुभूमिभागे उज्जाणे होत्था ॥ तत्थणं रायगिहेणयरे धण्णेणामे सत्थवाहेपरिवसति अड्रे
जाव अपरिभूए ॥ तस्सणं धण्ण सत्थवाहस्स भदाणामं भारिया होत्था अहीणपंचिंदिय जाव सरूवे॥२॥ तस्सणं धणस्स सत्थवाहस्स पुस्ता भद्दाभारियाएअत्तयां चचारि सत्थवाह
अहो भगवन्! जब श्रमण भगवन्त महावीर स्वामीने ज्ञाताधर्मकथा के छठा अध्ययन का यह अर्थ कहा. तत्र सातवा अध्ययनका क्या अर्थ कहा? ॥२॥ यों निश्चय अहो जंबु! उसकाल उससमय में राजगृह नामका नगर था. उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था. उप राजगृह नगर की ईशानकून में * मुभूमिभाग नाम का उद्यान था. उस राजगह नगर में धन्ना सार्थवाह रहता था. वह ऋद्धिवंत यावत् ।
अपरिभूत था. उसको भद्रा नाम की भार्या थी वह संपूर्ण अंगोपांग से सुशोभित यावत् सुरूपा थी ॥२॥ - उम धन्ना सार्थवाह के पुत्र व भद्रा भार्या के आत्मन ऐसे चार पुत्रों थे. जिन के नाम१धनपाल,२ धनदेव, ।।
in रोहिणी का सातवा अध्ययन
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