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4- अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
लवणं लिंपइति, २त्ता उण्हं सुकं समाणे, तच्चपि दम्भेहिय कुसहिय वदति, महिया लेवेणं लिंपलि, एवं खलु एएणुवाएगं अंतर। बेढमाणे अंतरा लिंपेमाण अंतरासु. क्खमाणे जाव अट्ठ हिं मष्टिया लेबेहिं आलिंपइ, अस्थ हसि मतारगंसिअप.रम पारिसियं उदगंसि पक्खियेजा सणूण गोयमा ! से तुंब तेर्सि अट्टण्हं मटियालेवणं गुरुययाए भारियाए गुरूयभारिययाए उपि सलिलमइवतित्ता अहेधरणियलं पइट्ठाणे भवति ॥ एवामेव गोयमा। जीवावि पाणाइ वाएणं जाव मिग्छादसणसंलणं अणुपुत्रेणं अट्ठकम्मं पगडिओ समजिणित्ता,तासिं गुरुयात्ताए भारिययाए, गरुय
भारियाए कालमासेकालकिच्चा धरणियलमवित्तत्ता अहे नरगतलं पइट्ठाणा भवति ॥ उसे ताप में सूकावे और तीसरी वक्त दर्भ व कुश से विंटकर मिट्टी का लेप लगावे यो पाठ बार दर्भव कुश से लपेट कर पिट्टी के लेप लगया कर और प्रत्येक लेप करके धूप में सकावे करना तीर सके अगाध पानी में उसे ढाले. अहो गौतम ! उस आठ लेम के भार से वा तुम्बा पानी में डालने से नीये जमीन पर जाकर ठहरता है, अहो गौतम ! ऐसे ही प्राण तिपात यावत् मिथ्या दर्शनशल्य से जी आठ कर्म प्रकृतियों एकत्रित करके उस की गुरुता के भार से काल के अवसर में काल करके : तल को व्यतीक्रांत करके नीचे नरक सल में नाकर रहते हैं. अहा गौतम ! इस तरह जीव का गुरुत्व है.नाई
• पकाशक-राजाबरादरलाला सुखदवमहायज
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