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घष्टांङ्ग जाताधर्षवधा का प्रथम श्रुतमन्ध फ.
एवं खलु गोयमा ! जीव! गरुयत्तं हवमागच्छति ॥ ५ ॥ अहणं गोयमा ! से तुबे तेसिं पढमेलगसि महियालेसि तित्तसि कुहियषि, परिसाडियांस, ईसिं धराणयलाओ उप्पत्तित्ताणं चिटुइ तयाणतरंचगं दोच्चपि माहे पालेवे जाव उप्पत्तिताणं चिटुंति, एवं खलु एएण उवाएणं तेसु अट्ठसु महियालेवेनु तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे अहे ,धरणियलेमइवइत्ता उप्पिसलिलतलपइट्टाणे भवइ ॥ एवामेव गोयमा ! जीवा पाणइवाय वेरमणेणं, जाव मिच्छादसणसल्लरमणणं आणुपुयेणं अट्ठकम्मपगडीओ
खवेता गगणतल मुप्पइत्ता उपिलोयग्गपतिट्ठाणा भवंति ॥ एवं खलु गोयमा ! कहा है ॥ ५ ॥ अहो गौतम ! उस पानी में रहे हवे तुम्चे पर से दर्भ व कुश मडकर गलकर प्रथम लेप दूर हावे ता वह तुम्बा धरणी तल से पानी में चित् ऊपर आता है, दूसरा मिट्टी व शन का लप गलने से ज्यादा ऊपर आता है यों आगे लेप दूर होने से वह तुम्बा पानी ऊपर आकर तीरता है वैसे हैं। 3 गौतम ! जीव प्राणातिपात के निवर्तमे से यावत् मिथ्या दर्शन शल्प के निवर्तने स अन्क्रप से आठों कमों का क्षयकर गमन तल को उलंचकर लोक के उपर अग्रभाग (मोक्ष स्थान) में स्थित होते हैं. अहो गौतम ! इस तरह जीव रघुत्व प्राप्त करते हैं. ॥६॥ अहो गत श्रमण भगवान महाव र समीने ज्ञातामूत्र के छठा अध्ययन
HD तुम्बे का छठा अध्ययन Arch
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