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सूत्र
अर्थ
4- अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
॥ षष्ठम अध्ययनम् ॥
जतिणं भंते ! समणेणं भगवया अयमट्ठे पन्नचे, छट्टरसणं भंते संपेतेण के अट्ठे पन्नंते ? ॥ रायगिहे णामं नयरे होत्था,
महावीरेणं जाब संपत्तेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स ! णायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव ॥ एवं खलु जंबु । तेणं कालेणं तेणं समएणं तत्थणं रायगियरे सेजिएणामरायाहोत्था, तत्थणं रायगिहरुस बहिया उत्तरपुरिच्छिमदिसीभाए एत्थणं गुणसिलएणामं चेइए होत्था ॥२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुन्त्राणु पुत्रि चरमाणे जाव जेणेव रायगिणयरे जेणेव गुणसिलए चेइए. तेणेव समोसढे, अहा पडिरूवं अहो भगवन् ! श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामीने ज्ञाता धर्म कथासूत्र के पांचवा अध्ययन का यह अर्थ कहा तो छठा अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? ॥१॥ अहो गौतम ! उस काल उस समय में राजगृह नाम का नगर था. उस राजगृह नगर में श्रेणिक नाम का राजा था. उस राजगृह नगर की ईशानकून { में गुणशील नाम का उद्यान था. ॥ २ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवान महावीर स्वामी पूर्वानुपूर्वी चलते ग्रामः नुग्राम विचरते राजगृह, मगर के गुणशील उद्यान में पधारे वहां यथा प्रतिरूप
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• प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ०
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