________________
अर्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
॥ ८१ ॥ एवमेत्र समणाउसो ! जात्र णिग्गंत्योवा जिग्गित्थिवा ओस जान संथारए पमते विहरति सेणं इहलोए चैत्र बहुणं समणाणं समणीणं हीलणिजे संसारो भाणियन्त्रो ॥८२॥ तणं ते पंथगवजा पंच प्रणगारसया इमीसे कहाए लडट्ठा समाणा अन्नमन्नं सहावेति २त्ता एवं वयासी-सेलएरायरिसी पंथरण बहिया जात्र विहरति त सेयं खलु देवाप्पिया! अहं सेलयं रायरिसी उवसंपजित्ताणं विहरित्तए | एवं संपेह२ त्ता सेलराय शिसं उवसंपज्जित्ताणं विहरति ॥ ८३ ॥ तंतणं ते सेलयं पामोक्खाए पंचअणगारसया बहुणिवासाणि समण परियागं पाउणित्ता, जेणेव पुंडरिएन्ए { सब करके यावत् विचरने लगे. ॥८१॥ अहो अ युष्मान् श्रमणों! वैसेही हमारे कोई साधु साध्वी पार्श्वस्थपने यावत् था में प्रसादी बनकर विचरेंगे ने इसलोक में बहुत साघु आदि चारों संघ में हीलना, निंदा, खिंचना को प्राप हावेंगे यावत् मंसार में परिभ्रमण करेंगे ॥ ८२ ॥ पंथक सिवाय अन्य ४९९ साधुओं को ऐसा मालुम हुवा कि शेलगराज पं बाहिर विचरने लगे हैं तब उन सबने परस्पर मिलकर ऐसा कहा कि अपन को शेलग राजर्षि की आशा में जाकर रहना चाहिये. फोर वे सब शेलगराजर्षि की पास जाकर उन की साथ उन की आज्ञा में विचरने लगे ॥ ८३ ॥ तत्र लग राजर्षि प्रमुख पांच सो अनगारों बहुत वर्ष पर्यंत साधु की पर्याय पालकर यादव पुत्र अनगार जैसे पुंडरीक पर्वत ( शेडुंजय) पर सिद्ध हुने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
) प्रकाशक राजाबहादुर लालासुखदेव सहायजी ज्वाला प्रसादजी •
२७६
www.jainelibrary.org