________________
१
पष्टाङ्ग ज्ञाताधरया का प्रथम श्रमस्कन्ध पत्र
पइय सुकुमालस्सय सुहोचियरस सरीरंगसि वेयणा पाउब्भूया उज्जला जाव दुरहियासा,कंडुपदाह पित्तजर परिगय सरीरेयावि विहरति॥ततेण से सेलए रायरिसी तेणं रोयायंकेणं सुक्के किसे जाएयावि होत्था ॥ ६५ ॥ ततेणं सलए रायरिसी अन्नयाकयाई पुवाणुपुचि घरमाणे जाब जेणेव मूभूमिभागे जाव विहति ॥ ६६ ॥ परिसा निग्गया महुओविराया निग्गओ, सेलगंअणगारं वंदइजाव पज्जुवांसइ ॥६॥ ततेणं से मडुए राया सेलगस्स अणगाररस सरीरयं सुकंभुक्खलुक्खं जाव सव्वावाहं सरोगं पासति
२ ता एवं वयासी अहणं भंते ! तुभं अहापवितेहिं तिगिछिएहिं अहापवत्तेणं प्रकृनाले शेला राजर्षि सुकुगल हुवा शरीर में वेदना उत्पन्न हुई. यह वेदना उज्जल यावत् सहन नहीं हो सके ती थी. इस तरह की दाहजरवाली वेदना सहित शेलग राजर्षि विचरने लगे. तब वह शेलग राजर्षि उस राग कर शुष्क व दुर्बल शरीरवाले हुए॥६५॥वह शेलग गजाप पूर्वानुपूर्वि चलते ग्रामानुग्राम विचरते शेलग पुर के सुभूमिभाग उद्यान में पधारे॥६६॥परिषदा वंदन करने को आई. मंडुक राजा भी वंदन करने को आये वह लग अनगार को वंदना नमस्कार यावत् पर्युपासना करने लग॥६७||अब शुष्क यारत् व्याधि से परिपूर्ण रोगिष्ट शेलग अनगार का शरीर देखकर वह मंडुक राजा बोले अहो भगवन् ! मैं आपके आचार को ।
सलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org