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बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी र
अहिजइ बहुहिं चउरा जाव विहरति ॥ ६२ ॥ ततेणं से कुए मेलयस्त अणगारस्स ताई पंथय पामोक्खाई पंचअणगारमयाति सीसत्ताए वियरइ ॥ ६३ ॥ ततणं से सुए अणगारे अण्णयाकयाइ सेलएपुरतो सुभुमिभाग्गओ उजाणाभो पणि. स्खामति पडिणिक्खमित्ता वहिया जगवयाविहारविहग्इ ॥ ततेणं से सुए अणगारे अन्नयाकयाइ तणं अणगारसहस्सेणसद्धिं संपरिबुडे पुवणुपुविचरमाणे गामाणुगामविहरमाणे जेगेव पुंडरिएपवए जाव सिद्धे ॥ ६४ ॥ ततेणं तस्स सेलगस्स रायरिंसिरम तेहिं अंतेहिय पंतेहिय तुछेहिय लुहहिय अरसेहिय विरसेहिय
सीएहिय उण्हेहिय कालायकतेहिय पमाणइकतेहिय मिच्चंचपाण भोयणेहिय । विचरने लगे ॥ ६२ ॥ शुक अनगारने पंथक प्रमुख पांच सो साधुओं शैलगअन्गार को शिष्यपने दिथे ॥ १३ ॥ अब वह शु अनगार एकदा एक हजार अनगार की साथ परिवरे हुवे ग्रामनिग्रांप चलता पुंडरीक पर्वत पर गये यावत वहां सिद्ध हुरे ॥ ६४ ॥ तब सेलग राजर्षि अंत, मान, तुच्छ, रुक्ष, अरम विरस, शीन, ऊष्ण, कालोतिकान्त, व प्रमाणातिकान्त पान व भोजन नित्य करने मे उस मुकुपाल
नियमसर नहीं मिलने से. २ अल्प या आधिक आहार,
•प्रक शकराजावह दुलाला सुखदेवसायजी ज्यालापमानी.
अर्थ
- अनुवादक
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