________________
48
२६७
+ पष्टाङ्ग बातमधर्मकथा का प्रथम शुवस्कंध 43+
जाव रायाभिसेयं उबटुवेह २ अभिसिंचंति जाव गयाजाए, जाव विहरति ॥६१॥ ततेणं से सेलएराया मड्यरायं अपुछह,॥तएणं से महएराया कोटुंबिय पुरिसे सद्दावेति. २ ता एवं क्यासी-खिप्पामेव भो सेलगपुरं नगर आसिय जाव गंधवटिभुय करेह कारवेह एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह ॥ ततेणं से महुएराया दोच्चंपि कोटुबिय पुरिसे सहावेइ २त्ता एवं व्यासी-विप्पामेव सेलगरसरण्णो महत्यं जाव निक्खमणांभिसेयं जहेव मेहस्स तहेव णवरं पउमावतीदेवी अग्गकेसे पडिच्छइ, सच्चवि पडिग्गहं
गहाय सीयं दुरूहंति, अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई घनकर विचरने लगे ॥ ६१ ॥ फीर सेलग राजाने मंदुक राजा को दीक्षा के लिये पूछा. मंडक राजाने कौटुम्बक पुरुषों को बोलाकर कहा कि अहो देवानुपिय ! शेलगपुर नगर को स्वच्छ कर सुगंधित बनायो और मुझे मेरी भाज्ञः पीछी दो. पुनः मंडुक राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और कहा कि शेलग राजा के लिये वडा बहुत मूल्यबाला दीक्षा का उत्सव करो. इम का सब वर्णन मेघकुमार जैसे जानना. पद्म पती देवीने अग्रकेश ग्रहण किये. वही पात्र लेकर शिविका में बैठी. शेष सब पूर्वोक्त है यावत् स पायिकादि अग्यारह अंग का अध्यया करके बहुत चतुर्थ भक्त यावत् तप मंयम से आत्माको भावते हुने
सेलग रान.र्षे का पांचवा अध्ययन
-
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org