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सूत्र
अर्थ
अनुवादक-ह्मचारीमुनि श्री अपो क ऋषिजी
अहं बहुमुकजेसुय कारणेसुय जाव ताणं पव्वइयाणवि समणाणं बहुसु जात्र चत्र ॥ ५८ ॥ ततेणं से सेलगे राया पंथग पामोक्खाणं पंचमंतिसए एवं बयासीजणं देवापिया ! तुब्भे संसार भउग्गिा जाव पव्वयह, तंगच्छहणं देवाणुपिया ! ससु २ कुटुंबसु जेट्ठपुत्ते कोटुंबमज्झेदृवेत्ता पुरिससहरसवाहिणीयाओ सयाओ दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउन्भवह ॥ ५९ ॥ तेवि तहेब पाउन्भवती ॥ ६० ॥ ततणं से सेलएराया पंचमंतिसयाई पाउब्भवमाणाई पासइ २त्ता हट्ट तुट्टे कोटुंबिय पुरिसे सद्द।बेइ २त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुनिया ! मड्डयरस कुमारस्स महत्थे
{ हुए यावत् दीक्षा लेंगे. जैसे संसार के बहुत कार्यों मे कारणों में हम मंत्री थे वैसे ही बहुत श्रमणों के कार्यों में यावत् हम आप को चक्षुभूत होंगे ॥ ५८ ॥ तब सेलगराजा पंथक प्रमुख पांच सों मंत्रियों को ऐसा कहने लगा कि अहो देवानुप्रिय ! जब तुम संसार भय से उद्विन बने हुये यावत् दीक्षा लेते हीं तो अहो देवानुप्रिय ! तुम अपने गृह जावो, जेष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापकर सहस्र पुरुष वाहिनी शिविका पर बैठकर मेरी पास आवो ॥ ५९ ॥ वे पांच सो मंत्रियों वैसे ही करके वहां आगये ॥ ६० ॥ अब वह बेलग राजा पांच सौ मंत्रियों को आये हुवे देखकर द्रष्ट तुष्ट हुआ और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर ऐसा कहा कि अहो देवानुमिय ! मंडुक्क कुमार का राज्याभिषेक शीघ्रमेव तैयार करो
यावत् वह राजा
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राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादी •
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