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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मान श्री अपाळक ऋापना
सर्द्धि भत्ताई अणसणाए जाय केबलवरणाण दंसण समुप्पाडित्ता ततो पच्छा सिद्धे जाव सव्व दुक्ख पहीण ॥ ५५ ॥ ततेणं से सुए अण्णया कयाइ जेणेव सेलगपुरनगरे जेणेव सुभूमिमाए उज्जाणे समोसरिए ॥ परिसा जिग्गया, सेलओ णिगाच्छा, धम्म सोच्चा जं गवरं देवाणुप्पिया ! पंथग पामोक्खाइ पंचमंति सयाति आपुच्छामि मंडयंच कुमारं रजे ठावेमि, ततो पच्छा देवाणुप्पियाणं मुंडे भवित्ता, अगारातो अणगारियं पञ्चयामि ॥ अहासुहं ॥ ५६ ॥ ततेणं
से सेलगराया सेलगपुरं नगरं अणुपविसइ २ जणेव सएगिहे जेमेव बाहिरिया दर्शन प्राप्त किया. तत्पश्च न घे सिद्ध हुये यावत् सब दुःखों से रहित बने ॥ ५५ ॥ अब शुक अनगार एकदा शेलग पुर नगर में सुभूमि भाग उद्यान में पधारे. परिषदा आई. शेलग राजा भी दर्शन करनेको। निकले धर्म श्रषण किया. और कहा कि अहो देवानप्रिय ! मैं मेरे पांच सो मंत्री को पुछकर मंडुच कुमार को राज्याभिषेक करके आपको पाम मुंडन बनकर गृहवास मे साधुपना अंगीकार करूंगा. अहो। देवानुप्रिय ? जो मुख होवे वैसे करो ॥ ५६ ॥ अव यह शेळग राजा शेलगपुर नगर में प्रवेश कर अपने स्थान गया. यहाँ बाहिर की उपस्थान शाला में आकर सिंहासन पर बैठा. उनोंने यहां पांच सा
० प्रकाशक-राजाबहादुर काला मुखदरमहायजी ज्वालाप्रसादाजी.
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