SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र २६२ ६वट्ठयाए एगे अहं,नाणदंसणट्टयाए दुवे अंह, पएसट्टयाए अक्खएविअहं, अन्वएवि अहं, अवट्ठिएवि अहं, उवउगट्ठयाए अणेगभूय भाव भविएवि अहं ॥५१॥ तत्थणं से सुए ! संबुद्धे थावच्चा पुत्तं वंदति नमसंति २ ता एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! तुभं अंतियं केवलि पण्णत्तं धम्मं णिसामित्तए, धम्मकहा भणियबा ॥ ५२ ॥ ततेणं से सयपरिवायए थावच्चापत्तस्स अतियं धम्मं सोच्चानिसम्म एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! परिवायगसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुड देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता पवइए ॥ अहासुहं देवाणुप्पिया ! जाव उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरत्ताउय एगंते एडति सयमेव सिंह उप्पाडेति २ त्ता और उपयोग आश्रिय अनेक भूनभावित हूं॥५१॥ यहां वह शुरु प्रतिवोध पाया, और थावर्चा पुत्र अनगार को बंदमा नमस्कार कर बोला कि अहो भगवन् ! आप की पास से मैं धर्म का श्रवण करना चाहता हूं. तब थावर्चा पुत्र अणगारने धर्म कथा कही॥५२॥थावर्ची पुत्रकी पास धर्म श्रवण कर, शुक ऐमा बोले, अहो | भगवन! एक हजार परिव्राजकों की साथ आपकी पास मुंडित होकर दीक्षा अंगीकार करना मैं चाहता हूं अहो देवानुप्रिय ! तुम को जैसे मुख होवे वैसे करो. यावत् ईशानकून में जाकर त्रिदंड यावत् गेरूं रगित 15 वस्त्र को एकांत में डालकर सतः शिखा ( चोटी ) का लाच किया. और थावचा पुत्र अनगार की: अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिजी * • प्रकाशक-जावदूर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. wwwm Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy