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43 षष्टांग ज्ञाताधर्मस्या का प्रथम अतस्कन्ध 42
कालमासाय अत्थमासाय धण्णमाप्साय ॥ तत्थणं जेते काल मासा तेणे दुवालस विहा पण्णत्ता तंजहा सावणे भत्रे, असणे कत्तिए मगसिरे, पोसे, माहे, फग्गुणे, चित्ते, वेसाहे, जेडे असाढे, तणं अभक्खया, तत्थणं जेते अत्थमासा ते दुविहा पण्णत्ता, हिरण्णमा राय, सुवण्णमासाय , तेण अभक्खया, धण्णमासा तहेव ॥ ५० ॥ एगे मवं, दुरे भवं, अणेगेभवं अक्खएभवं, अव्वए भवं, अवट्ठिए भवं अणेग भूय भाव भविएविए भवं ? सुया ! एगेवि अहं दुवेवि अहं जाव
अणेगभूयभावभावएविअहं ॥ से केण?णं भंते ! एगेवि अहं जाव ? मुया ! मास २ अर्थपास ३ व धान्य पास. इस में काल मास के बारह भेद जिन के नाम-श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मृगशर. पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ट, व अप.द. यह अभक्ष्य है अर्थ मास के दो भेद चांदी का मासा व सुवर्ण का मासा यह भी अभक्षा है मौर धान्य मास ( उडिद ) का सरिमा जैसे कहना. ॥ ५० ॥ प्रश्न-आप एक हैं, दा हैं, भनेक हैं, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है व अनेक भूतभावित क्या हैं ? अहो शुक ! में एक भी . दोभी हूं, यावत् अनेक भूत भाव भ वैर भी हूं. अहो भगान्! यह किस तरह आप कहते हो! अहो झुक! आत्म द्रव्य आश्रय मैं एक हूं ज्ञान दर्शन आश्रिा मैं दो हं. प्रदेश अाश्रिय अक्षय, अव्यय व अस्थित हूं
सेलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 4
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