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षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
तंजहा-मित्तसरिसत्रया, धण्ण सरिसवया, तत्थेणं जे ते मित्त सरिस वया ते तिविहा पण्णत्ता तंजह!-सहजायया, सहवड्या सहपंकीलियाय तेणं समणाणं णिगंथाणं अब्भक्खेया॥सत्थाणं जेधण्ण सरिसवा ते दुविहा पण्णत्ता,तंजहा सत्य परिणयाय, असत्थ परिणयाय, तत्थणं जेते असत्थ परिणयाय ते समणाणं जिग्गंथाणं अभक्खेया ॥ तत्थणं जेते सत्थ परिणया ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा फासुगाय अफासुगाय,तत्थणं अफामुयाय सयानो भवखेया|तत्थणं जेते फासयाते दुविहा
पण्णत्ता, तंजहा जातियाए, अजातियाय, तत्थणं जेते अजातियाय ते अभक्खया ॥ शुक ! हमारे मन में सरिसव भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है. अहो भगवन् ! किस काग्न से सरिसव भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है ? अहो शुक ! सारमव के दो भेद कहे हैं.-१ मित्र सरिसव व २ धान्य सरिसव. इस में से मित्र सरिसव के तीन भेद कहे हैं-१ साथ जन्मे हुवे २ साथ ही वृद्धि पाये हुवे और ३ सथ ही धूलादि क्रीडा की हो. यह मित्र सरिसव श्रमण निर्ग्रन्थों को अभक्ष्य हैं. जो धान्य मरिमर हैं उम के दो मेद है-१ शस्त्र परिणत व २ शस्त्र परिणत रहित. जिस धान्य में * शस्त्र नहीं परिणमा है यह श्रमण निर्ग्रन्थों को अभक्ष्य है. जो शस्त्र परिणत है उस के दो भेद कह हैं११ फामुक और अफ्र'मुक. इस में से अफ्रासुक साधुओं को अभक्ष्य है. और फ्रासुक के दो मंद
सेलग रान का पांचवा अध्ययन
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