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________________ सूत्र 4 जनवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + माणे गामाणुगामं दुइजमाणे सुहंमुहेणं विहरमाणे जेणेव सोगंधिया जयरीए जेणेव गिलासाए उज्जाणे तेणेव समोसढे परिसाणिग्गया, सुदंसणात्रि निम्नए ॥ थावच्चा पुस्तं णामं अणगारं वंदति नमसित्ता एवं वयासी तुम्हाणं किं मूलए धम्मे पण्णत्ते ? ततेणं यात्रश्चा पुत्ते सुंदसणेणं एवं वृत्तंसमाणे, सुदंसणं एवं बयासी- सुदंसणा ! त्रिणयमूले धम्मे पण्णत्ते, सेविय विए दुविहे पण्णत्ते तंजहा- आगारचिणएय अणगारविणस्य ॥ तत्थणं जेसे आगार विज सेणं पंचअणुन्नयाई सतसिक्खावयाइ, एक्कारस उवासग पडिमाआतो तत्थणं जे से अणगारविगए सेणं पंचमहव्वयाइं तंजहा सव्त्राओ पाणाइवायाओ नीलाशोक उद्यान में पधारे. परिषदा आई. सुदर्शन शेठ भी आया. थाबच पुत्र अनगारको वंदना नमस्कारकर ऐश बोला कि आपके मत में धर्म का क्या मूल है ? सुदर्शन के ऐसे कहने पर थावच पुत्रने उत्तर दिया कि यही सुदर्शन ! हमारे मत में विनय मूळ धर्म कहा है और वह विनय दो प्रकार का है. तथा • बागार विनय वर अनागार विनय आगार विनय में पांच अनुव्रत सात शिक्षा व्रत व श्रावक की अग्यारह प्रतिमाओं होती है. अनगार विनय में पांच महाव्रत हैं. तद्यथा सर्वथा प्रकार से प्राणाति पाद से निवर्तना, १ सर्वथा प्रकार से मृषावाद से निवर्तना, ३ सर्वथा प्रकार से अदत्तादान से निवर्तना, Jain Education International For Personal & Private Use Only ● प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायओ ज्वालामसाद २५० www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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