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वामणं, सम्वाओ मुसावायाओ रमणं, सन्बामो अदिमादागाओ रमणं, सन्यानो मेहुणाओ बेरमगं, सवाओ परिग्गहाओ बेरमणं, सबाओ राइभोयणाओ बेरमणं, जाय मिन्छा देसणस्लाओ वेरमणं दसविहे पञ्चक्खाणे,बारस मिक्खपडिमाभो चयणं
V२५१ दविहेणं विणयमलेणं धम्मेणं अणुपुम्वेणं अटुकम्मपगडीउसवेला लेायग्गपयट्टाणे मति ॥४१॥तएणं थावच्चापुत्ते सुदसणं एवं वयासी तुम्भेणं सुदंसणा किं मूलए धम्मे पण्णते? मन्हाणं देवाणुप्पिया ! सोय मलए धम्मे पण्णत्ते ? जाव सग्गं गच्छति ॥ ४२ ॥
ततेणं थावचापुत्ते सुंदसणं एवं वयासी सुरंमणा से जहा मामए के पुरिसे ४ सर्वथा प्रकार से मैथुन से निवर्तना और ५ सर्वथा प्रकार से परित्रह से निवर्तमा, सर्वथा मकार से रात्रि भोजन से निवर्सना य वन् सर्वथा प्रकार से मिथ्या दर्शन शल्य से निवर्तना. और पारा प्रकार की भिक्षु पडिमा भी इस धर्म में हैं. इन दो प्रकार के विनय मूल धर्म से आठ कर्म की प्रकृतियों का तय कर जीव लोकान में स्थित होते हैं अर्थात् सिद्ध होते हैं ॥४१॥ तब थावर्चा पुत्रने मुदर्शन को पूछा कि अहो सुदर्शन ! तुम्हारे मत में धर्म का क्या मूल? अहो देवानु प्रिय ! हमारे मन में भूचि मूल धर्म है ।
यावत इस तरह शूचि करनेवाला वर्ग में जापाई ॥ ४२ ॥ तब थावर्चा पुत्र सुदर्शन को कहने लगे कि 10ो सुदर्शन ! जैसे ई पुरुष रुधिर से भरा वा वसा रुधिर से घोरे और इस तरह रूधिर में ।
- षष्टाङ्गदाताधर्मकथा का प्रथम भूतस्कन्ध AM
सेलन राजर्षि का पांचवा अध्ययन *
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