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________________ षष्टाङ्ग ज्ञाताधमकथा का प्रथम श्रुतस्कंध 420 देवाणुप्पिया ! किंचि असुई हवइ, तं सव्वं सज्ज पुढवीए आलिंपइ. ततोपच्छा सुद्धेणं वारिणा पक्खालिज्जइ, ततो तं असुई मुई हवइ॥एवं खलुजीवा जलाभिसेय पूयप्पाणो, अविग्घेणं सगच्छति॥३८॥ततेणं सुदंसणे मुयस्त अतिए धम्मं सोचा हट्ठ तुट्ठ सुयस्स अंतियं सोयमूलयं धम्म मेण्हइ २त्ता, परिवायएमु विपुलेणं असणं पाणंखाइमं साइमं वत्थ पडिलाभेमाणे जाब विहरइ॥३९॥ततेणं से सुए परिव्वायगे सोगंधियाओं णयरीओ णिगच्छइ गिगाच्छित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ ॥ ४ ॥ तेणं कालणं तेणं समएणं थावच्चापुत्तेणामे अणगारे सहस्सेणं अणगारेणं साई पुगाणुपुचि चरखारी पृथ्वी से उम को लिंपते हैं तत्पश्चात् शुद्ध जल से उस का प्रक्षालन करते हैं. इस तरह करने से चि की भूचि होती है. इसी तरह जलाभिषेक से पवित्र कराये जीवों विघ्न रहितपना से स्वर्ग ओक । जाते हैं ॥ ३८ ॥ इस तरह शुक की पास से धर्म श्रवण कर सुदर्शन श्रेष्ठ आनंदित हुवा और उनकी पास से शूचिमूल धर्म अंगीकार कर परिव्राजकों को विपुल अशनादि चारों आहर वस्त्र वगैरह देता हुवा विचर रहा था।॥३१॥ पदावहांसे वह शुक परिव्राजकनिकलकर बाहिरदेशमें विचरने लगा॥४०॥उस काल उस समयमें थार्चा पुत्र अनगार एक हजार पाधु सहित पूर्वानुपूर्ती चलते ग्रःमानुग्राम विचरते सोगंधिक नगरी में 28सेलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 428 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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