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8+ षष्टाङ्गतामकथा का प्रथम श्रुतरकन्ध 41
॥ पञ्चम अध्ययनम् ॥ जइणं भंते ! समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स नायझयणस्म अयम? पण्णत्ते, पंचमस्स नायझयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं आव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते ? ॥ ॥ एवं खा जंबु ! तेणं कालेणं ते समएणं बारावती नाम नयरी होत्था, पाईणपडीणायया उद्रीणदाहिण विच्छिण्णा, नव जोषण विच्छिण्णा दुगल 7 जो गायामा, धणवति मतिणिम्माया चामीयर पवर षागारा नाणाविधिमांग पंचणकविसीसगसोहिया, अलिपापुरीसंकासा, पमुइय पक्कीलिया, पच्चक्खं देवलोगभूया ॥ २ ॥ तीसेणं बारावतीए गयरीए बहिया
ओ ममवन् ! श्री श्रमण भमवंत महावीर स्वामीने ज्ञा।। सूत्र के चौथा अध्ययन का उक्त अर्थ कहा तब पांचवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ॥१॥ अहो अम्बू ! उस काल उस समय में द्वारिका नामकी नगरी थी. यह पूर्व पश्चिम लम्बी व उत्तर दक्षिण चौडी थी. नव योजन की चौडी व बारह योपन की लम्बी थी. यह द्वारिका नवा वासुदेव के लिये धनपति (कुरेर ) की बुद्धि से बनाई गई थी. उस 4
बाबाध प्रकार के पांच वर्णवाले मणियों के कंगरे थे. यह टारिया अमापरीसमान थी. अ.नंद व क्रीडा करने के लिये अति सुशोभित व प्रत्यक्ष देवलोक भूत थी ॥२॥ उस द्वारिकाई।
4.111 सेग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 4.3
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